Jharkhand Chief Minister Raghubar Das today appreciated Prime Minister Narendra Modi for creating a federal system based cooperation between the Centre and the State by setting up Niti Aayog.
Speaking at the Niti Aayog’s meeting in New Delhi today,Das delivered his speech in Hindi.The public relation department released a mail quoting him.This mail said as follows in Hindi:
मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास ने आज नीति आयोग की बैठक में कहा कि केन्द्र और राज्यों के बीच सहभागिता आधारित संघीय व्यवस्था को लागू करने के उद्देष्य से नीति आयोग के गठन के लिये राज्य सरकार प्रधानमंत्री को साधुवाद देता है। निष्चय ही नवगठित केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों के समक्ष भारत के विषाल प्रजातंत्र मंे शक्ति और शासन के प्रत्येक इकाई के रूप में सषक्त करनेकी चुनौती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जनता जिस विष्वास के साथ नई बहुमत की सरकार का गठन किया है उससे सरकार की जवाबदेही और अधिक बढ़ गई है। जनता के उम्मीदों पर खरे उतरने के लिए हमें ग्राम-स्तर पंचायत स्तर,जिला स्तर और राज्य स्तर पर जन-सामान्य को सहभागिता-आधारित प्रषासन देने की आवष्यकता है। इसी कड़ी में शीर्ष-स्तर पर केन्द्र और राज्यों के बीच सहभागितिा-आधारित संघीय व्यवस्था की यह पहल भारतीय गणतन्त्र में एक नए अध्याय का सूत्रपात है।
श्री रघुवर दास ने कहा कि सहयोगी राज्यों के आर्थिक विकास में केन्द्र सरकार आरम्भ से ही सहयोग देता रहा है किन्तु इसे मात्र केन्द्र की सहयोग रषि के रूप में देखना अपूर्ण होगा। आवष्यकता इस बात की है कि राज्य की सुदृढ़ता,संसाधनों की उपलब्धता,पिछड़ेपन एवं स्थानीय आवष्यकताओं को देखते हुए केन्द्र सरकार से सहयोग प्राप्त हो तो विकास के माहौल में बदलाव आएगा। उल्लेखनीय है कि राज्य की सम्पूर्ण वार्षिक योजना आकार का लगभग एक तिहाई हिस्सा केन्द्र सरकार से प्राप्त होता है, परन्तु यह किसी ने किसी योजना विषेष से समबद्ध रहता है और योजना-विषेष को लागू करने के लिये राज्यों के समक्ष कई शर्तों भी रहती है। ये शर्तें पूरे देष में एक जैसी होती है जबकि पूरे देष की भौगोलिक-सामाजिक-आर्थिक स्थिति समान नहीं है। अतःकई राज्य इन योजनाओं का पूरा लाभ नहीं ले पाते हैं। उदाहरण के तौर पर ।प्ठच् के अन्तर्गत जल संसाधन मंत्रालय केवल उन्हीं योजनाओं के विरूद्ध स्वीकृत देता है,जिनकी पटवन क्षमता कम से कम दस हेक्टेयर हो। झारखण्ड जैसे पठारी भौगोलिक प्रदेषों में एक स्थल पर एक साथ दस एकड़ समतल भूमि चिन्हित करने में काफी कठिनाईयां होती है जिसके फलस्वरूप् झारखण्ड इस योजना का भरपूर लाभ नही ले पाता है।
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया कि केन्द्रांष के रूप में विभिन्न योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार के अंषदान के विरूद्ध मैचिंग गा्रन्ट की व्यवस्था राज्य सरकार को ही करनी होती है। राज्यांष के अनुपात में भी साल-दरसाल बढ़ोतरी की प्रवृति केन्द्र संचालित योजनाओं में होती है,जिसके फलस्वरूप राज्य निधि पर लगातार दबाव बनता जाता है एवं राज्य सरकार को स्वतंत्र रूप से नयी योजनाएं चयन करने में कठिनाई होती है।
मुख्यमंत्री ने उम्मीद जताई कि नीति आयोग कोई भी योजना बनाते समय राज्यों के नजरिये पर भी विचार करेगी,क्योंकि किसी भी योजना का कार्यान्वयन राज्यों को ही करना होता है। अतःकार्यान्वयन करने वाली संघीय इकाइयों पर विभिन्न शर्तें एवं सभी राज्यों के लिए एक जैसा नीति निर्धारित करने से ऐसी योजनाओं के पीछे निहित मूल उद्ेष्यों की प्राप्ति संभवतः नहीं हो सकेगी। झारखण्ड जिसकी भौगालिक स्थिति पठारी और दुर्गम है, जिसमें 26 प्रतिषत आबादी अनुसूचित जनजातियों की है तथा राज्य की 42 प्रतिषत आबादी गरीबी रेखा से नीचे बसर करती है,मेैं आधारभूत संरचनाओं का सर्वथा आभाव है जहां विभिन्न केन्द्रीय योजनाओं में स्थानीय आवष्यकताओं के अनुरूप कुछ हद तक परिवर्तन एवं षिथिलिकरण किए जाने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।
माननीय सवोच्च न्यायलय द्वारा विगत वर्षों के दौरान आवंटित कोयला ब्लाॅकों का आवंटन रद्द करने के फैसले के आलोक में केन्द्र सरकार के द्वारा खनन पट्टांे की नीलामी प्रक्रिया अधिसूचित करते हुए राज्य को साझेदार बनाये जाने की पहल पर मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री जी को धन्यावाद देते हुए कहा कि आवष्यकता यह भी है कि राज्य में खनन् किए जा रहे कोयला की राॅयल्टी की दर 14 प्रतिषत से 20 प्रतिषत बढ़ाने के साथ लिंकेज के आधार पर दिए जा रहे कोयले की मात्रा पर भी बाजार दर/म.ंनबजपवद दर के आधार पर राज्य को राॅयल्टी मिलनी चाहिए ताकि राज्य के आर्थिक संसाधनों में बढ़ोŸारी हो सके। इसके अलावा कोयले के लम्बित खनन पट्टों का भी शीघ्र निष्पादन किए जाने की आवष्कता है ताकि राज्य को निबंधन एवं अन्य शुल्कों के आय प्राप्त हो सके।
श्री रघुवर दास ने कहा कि मेक इन इंडिया की अवधारणा मोदी सरकार की एक क्रान्तिकारी पहल है। झारखण्ड राज्य इस क्रान्तिकारी पहल में सषक्त भूमिका निभाने के लिए तत्पर है,जहां देष की 30 प्रतिषत खनिज सम्पदा उपलब्ध है। यह राज्य बागवानी,लघु वनोपज,एवं औषधीय उत्पादों के लिए भी उपयुक्त है। राज्य में यथेष्ठ संख्या में निपुण एवं पारंगत मजदूर तथा औद्योगिक शांति है जो राज्य में औधोगिक विकास के लिए उपयुक्त माहौल तैयार करती है। राज्य की इन क्षमताओं के भरपूर इस्तेमाल हेतु केन्द्र सरकार से बढ़-चढ़कर सहयोग की अपेक्षा है।
मुख्यमंत्री ने योजनाओं के कार्यान्वयन में आ रही बाधाओं की ओर ध्यान आकृष्ठ करते हुए कहा कि सबसे बड़ी बाधा वन भूमि के इस्तेमाल हेतु अनापŸिा प्राप्त करने में है। क्षतिपूरक वन रोपण हेतु गैर वन भूमि झारखण्ड जैसे राज्य जहों 30 प्रतिषत भूमि वन क्षेत्र अन्तर्गत है कि लिए बहुत कठिन हो गयी है। पर्यावरणीय स्वीकृति की उपलब्धता की प्रक्रिया को राज्यों को प्रत्यायोजित किए जाने की आवष्यकता है। उल्लेखनीय है कि प्रारम्भ में 50 करोड़ तक की योजनाओं की पर्यावरणीय स्वीकृति की आवष्यकता नहीं होती थी, जो बाद में बढ़कर रू 100 करोड़ तक कर दी गई । किन्तु वर्ष 2004 में यह सीमा केन्द्र सरकार ने समाप्त कर दी जिसके फलस्वरूप ऐसे मामलों में अत्याधिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है।
मुख्यमंत्री ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेष लागू करने पर धन्यवाद देते हुए कहा कि इसके फलस्वरूप् राज्य में विभिन्न विकास परियोजनाओं हेतु भूमि उपलब्ध कराने का मार्ग सरल एवं प्रक्रिया त्वरित हुई है।
मुख्यमंत्री ने अब तक योजना आयोग के द्वारा राज्यों के बीच केन्द्रीय संसाधनों के वितरण के मानकों के संबंध में पुनर्विचार करने अपील की है। झारखण्ड जैसा राज्य जहां कोलया, लोहा,इत्यादि खनिज एवं इन्हीं पर आधारित उद्योगों की बहुलता है के उत्पादो को राज्य के ळैक्च् में जोड़कर राज्य की प्रति व्यक्ति आय का आकलन किया जाता है जबकि इन उत्पादों से राज्य की जनता को कोई वास्तविक आय नहीं प्राप्त होती है। इस प्रक्रिया से आकलित प्रति व्यक्ति आय की आधार पर राष्ट्रीय संसाधनों का वितरण किए जाने के मानक के कारण झारखण्ड को केन्द्रीय संसाधनों में अपेक्षित अंष नहीं प्राप्त हो पाता है। अतःनिधि के वितरण के वर्षोें पुराने गाडगिल फार्मूले पर पुर्नाविचार किया जाना अपेक्षित होगा।
13 वंे विŸा आयोग में राज्य को कुल 7238 करोड़ रू॰ की राषि आवंटित की जानी थी,जिसके विरूद्ध अब तक मात्र 4929 करोड़ रू॰की राषि प्राप्त हो पायी है। शेष 2300 करोड़ रू की राषि की विमुक्ति अब तक नहीं की जा सकी जिसे अविलम्ब विमुक्त किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 के अंतर्गत पेंषन की देयता का बोझ झारखण्ड राज्य के लिए अत्याधिक है। ज्ञातव्य है कि आबादी के आधार पर पेंषन का अनुपात 1ः3 निर्धारित होनी चाहिए,परन्तु कर्मियों के अनुपात के आधार पर पेंषन की देयता राज्य सरकार को वहन करना पड़ रहा है जो 1ः2 है। फलस्वरूप 2600 करोड़ रू॰ का अतिरिक्त बोझ झारखण्ड सरकार पर पड़ रहा है। पेंषन की देयता का विभाजन अन्य राज्यों के मामले में लिए गए निर्णय के आलोक में आबादी के अनुपात में निर्धारित करने हेतु अनुरोध किया।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार नाबार्ड एवं राज्य सरकार के बीच झारखण्ड राज्य में अल्पकालीन सहकारी साख संरचना के पुनर्रूद्धार एवं पुनर्गठन के उद्ेष्य से भारत सरकार द्वारा गठित वैद्यनाथ समिति के अनुषंसा के आलोक में दिनांक 25.05.2008 को त्रिपक्षीय समझौता किया गया। उक्त समझौता के आलोक में राज्य सरकार द्वारा अपने हिस्से के 15.00 करोड़ रू विमुक्त कर दिए गए परन्तु केन्द्रांष मद में 102.14 करोड़ रू अभी तक अप्राप्त है,जिसे प्राप्त करने हेतु राज्य सरकार द्वारा पत्राचार किये गये हैं परन्तु फलाफल शुन्य है। इस राषि को शीघ्र विमुक्त किया जाने की आवष्यकता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत राज्य सहकारी बैंक ने लगभग 50 हजार लाभुकों के बैंक खाते खलवाये हैं किन्तु लाभुकों को प्राप्त होने वाले समस्त लाभ,जैसे दुर्घटना बीमा,ऋण आदि की सुविधाएं राज्य सरकार अपने संसाधन से कर रही है। राज्य के सहकारी बैंको को केन्द्र सरकार के द्वारा संचालित इस योजना में नाबार्ड के द्वारा वांछित सहयोग अपेक्षित है।
उन्होंने प्रधानमंत्री को ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया कि औद्यौगिक विकास एवं रोजगार के अवसर उत्पन्न करने हेतु राज्य उपक्रमों को आवंटित कोल ब्लाॅक रद्द कर दिए गइ हैं। जिन्हें पुर्नआवंटित करने की आवष्यकता है अन्यथा राज्य में संचालित उर्जा उत्पादन इकाईयों को कोयले की आपूर्ति संभव नहीं हो पायेगी तथा राज्य में उर्जा का उत्पादन कुप्रभावित होगा।
उन्होंने कहा कि झारखण्ड राज्य का गठन वर्ष 2000 के उतरार्ध में हुआ था। नये राज्य के लिए नये सचिवालय भवन,उच्च न्यायालय भवन के साथ-साथ नई राजधानी विकसित करना एक चुनौती है जिसमें भारी पूंजीनिवेष की आवष्यकता होती है। राज्य सरकार अपने संसाधन से इन आवष्यकतओं की पूर्ति करने में कठिनाई महसूस कर रहा है।
केन्द्र सरकार झारखण्ड की नई राजधानी को विकसित करने में विषेष पैकेज के रूप में राज्य को सहायता प्रदान करेगी ऐसी अपेक्षा है। इसी क्रम में खनन एवं उद्योगों पर आधारित इस राज्य में पिछले 10 सालों में ।पत ज्तंििपब में आषातीत वृद्धि हुई है और इसके लिए राज्य में हवाई अड्डों को विकसित करने में भी केन्द्र सरकार से आर्थिक एवं तकनीकी सहायता की अपेक्षा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नीति आयोग के गठन से जनता की और राज्यों की आषाएं बढ़ी हैं। केन्द्र में नई सरकार की सहभागिता आधारित संघीय व्यवस्था की अवधारणा ने झारखण्ड जैसे पिछड़े राज्यों में आषा की नई किरण लाई है। उन्होंने प्रधानमंत्री को इस पहल के लिये सहृदय धन्यवाद देते हुए उम्मीद जताई कि राज्य सरकार के सार्थक प्रयासों से नीति आयोग राष्ट्र में विकास की एक ऐसी बड़ी लकीर खींच पाएगा जिसमें ना सिर्फ राज्यों की बल्कि जन-धन की भी सहभागिता होगी।