बिहार राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की आठवीं अनुसूची के तहत पेंशन बटवारे के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार द्वारा दिये गये निदेश पर मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुण्डा द्वारा आज सर्वदलीय बैठक बुलार्इ गयी जिसमें सभी प्रमुख दलों के वरीष्ठ पदाधिकारियो भाग लिया।
बैठक को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य बंटवारे से कर्इ मुदों का उभरना स्वभाविक है, उनका मिलकर समाधान भी निकाला गया। फिर भी कुछ विषय शेष है। पेंशन मुíा एक ऐसा ही विषय है। इस मुदों पर तब चर्चा हुर्इ, संशोधन भी हुआ जब झारखण्ड असितत्व में ही नहीं था इसे उन भ्रूण हत्या की संज्ञा दी जा सकती है। कोर्इ भी प्रावधान जब राज्य हित में न हो, तो उसका विरोध स्वभाविक रूप से होना ही है। इस एक्ट के तहत पेंशन का बंटवारा कर्मचारियों के अनुपात में किया गया है जबकि झारखण्ड के साथ ही बने अन्य दो राज्यों के बीच यह बंटवारा जनसंख्या के आधार पर किया गया। वर्ष 1956 से अब तक जितने भी राज्य पुनर्गठन अधिनियम बनाए गये है उन सभी में पेंशन का अधार जनसंख्या है। झारखण्ड के लिए यह नीति झारखण्ड के प्रति अन्याय पूर्ण कहा जा सकता है। केन्द्र के अनुसार यदि बिहार के पेंशन दायितत्व की राशि 2584 करोड़ का भुगतान किया जाय तो राज्य वित्तीय संकट से घिर सकता है। प्रश्न केवल यह नहीं है, यहाँ प्रश्न नीति और राज्यों का उठता है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने अपनी बातों को तथ्यों के साथ केन्द्र के समक्ष बार-बार रखा कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की भांति झारखण्ड में भी जनसंख्या के अनुपात में पेंशन दायित्व भुगतान का उपबंध किया जाय। मुख्यमंत्री ने बताया की उन्होंने स्वयं 5 अक्टूबर 2010 के अपने पत्र द्वारा पेंशन दायित्व में भेदभाव विषयक विसंगति को दुर करने आग्रह किया परन्तु केन्द्रीय गृह मंत्री ने 15112010 के पत्र द्वारा कानून में संशोधन विषयक राज्य के आग्रह को ठुकरा दिया। पुन: 030311 को प्रधानमंत्री को इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया। इससे पूर्व भी 2004 से लेकर लगातार इस मामले में भारत सरकार को लिखा जाता है। बाध्य होकर राज्य सरकार ने इस मामलें में माननीय उच्चतम न्यायालय की शरण ली हैै। परन्तु मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन होने की परिसिथति में भी भारत सरकार ने दिसम्बर 2012, में 2584 करोड़ रूपये पेंशन दायितत्व मद में बिहार को भुगतान करने विषयक आदेश जारी किया है। इस सम्बन्ध में झारखण्ड के हित एवं भविष्य को ध्यानगत रखतेे हुए सभी दलों का सुझाव आवश्यक है। संघीय परंमपरा में यदि हम अपने क्षेत्र के हित को सुरक्षित नहीं रख सके तो जनता के प्रति अपने उत्तरदायितत्व को नहीं निभा सकेंगे। सभी दलों के सुझाव के आधार पर संवेदनशील हो सभी राजनीतिक दल सोचे, राज्य की एक आवाज प्रतिध्वनित हो तो निशिचत ही समस्या का हल निकलेगा।
बैठक में सभी दलों के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री के इस प्रयास का समर्थन किया और राज्य हित के प्रति एकजुटता दिखार्इ तथा केन्द्र सरकार के समक्ष इस बात को पुरजोर ढ़ंग से उठाने का सुझाव दिया। विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों ने संसद में इस विषय को रखने एवं संशोधन के लिए सरकार पर दबाव बनाने का भी आग्रह किया। सभी दलों के नेताओं ने प्रजातंत्र में पालिटिकल वायस की वकालत की। उन्होंने कहा की उनके प्रतिनिधि मंडल राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री से मिलकर समस्या को रखें। राज्यपाल को भी इस सम्बन्ध में ज्ञापन देकर अग्रेतर कार्रवार्इ हेतु अनुरोध किया जा सकता है।
उप मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस विषय पर पूर्व में भी कर्इ बार पहल की गर्इ है। यदि संविधान में संशोधन सम्भव है तो इस अधिनियम में भी संशोधन अवश्य हो सकता है।
बैठक के अन्त में मुख्यमंत्री ने इस संवेदनशील विषय पर सबकी स्वभाविक चिन्ता एवं सुझावों के लिए सबको धन्यवाद दिया। बैठक में भाजपा प्रतिनिधि श्री दिनेशानंद गोस्वामी, श्री अनन्त ओझा, राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रतिनिधि श्री केशव महतो कमलेश, जे0एम0 एम0 प्रतिनिधि जे0 पी0 बी0 पटेल, जे0 भी0 एम0 प्रतिनिधि श्री प्रदीप कुमार सिंह एवं श्री भोक्ता जी, आजसू प्रतिनिधि श्री देवशरण भगत, राजद प्रतिनिधि श्री गिरीनाथ सिंह, सी0 पी0 आर्इ0 श्री के0 डी0 सिंह, सी0 पी0 एम0 श्री गोपीकान्त बख्शी, झारखण्ड जनाधिकार मंच के श्री बन्धु तिर्की, राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी प्रतिनिधि श्री —ष्ण मुरारी गुप्ता, बहुजन समाज पार्टी के श्री दास जी समेत अन्य राजनितिक दलों के प्रतिनिधि उपसिथत थे।