राँची, 23 अगस्त, 2012
डाॅ0 रामदयाल मुण्डा अपने आप में एक विश्व स्तरीय संस्था थे। उनका नाम किसी परिचय का मुहताज नही। वे श्रृंखला बद्ध तरीके से विश्व को एक समूह के रूप में देखते थे। उनका कार्य क्षेत्र व्यापक क्षितिज के समान था। वे कला, संस्कृति, शिक्षा सहित हर क्षेत्र के विकास के लिए सतत् प्रयत्नशील थे। उनकी सोंच की परिधि काफी विस्तृत थी एवं उन्होंने राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन को उन्होंने बड़ी बरीकी से पढ़ा और समझा था। उनके बीच से उभरने वाले समस्याओं के प्रति वे सदैव चिंतित थे। वैश्विक पटल पर उन्होंने जनजातीय समस्याओं और विराट संस्कृति को मुखर स्वर दिया था। उन्होंने हर कार्य को अपना दायित्व, अपनी जिम्मेवारी के रूप में देखा और उसे पूर्ण करने के लिए समर्पित होकर अपने जीवन के अन्तिम समय तक कार्यरत रहें।
मुख्यमंत्री ने उपरोक्त बातें आज राँची विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह सभागार मे पद्मश्री डाॅ0 रामदयाल मुण्डा के जयंती समारोह में उपस्थित लोंगों को सम्बोधित कर रहे थे। डाॅ0 रामदयाल मुण्डा के जीवंत व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि समाज को जीवंत होना चाहिए। जीवंतता न हो तो प्रगति की दिशा में बढ़ना सम्भव नही है। वे सहज व्यक्तित्व के धनी, विद्वान साहित्यकार के साथ ही एक संवेदनशील व्यक्ति थे। जिन्होंने उनके व्यापक चरित्र को देखा वे उन्हें कभी नही भूल सकते। वे हमेशा प्रयासरत थे सम्पूर्णता के साथ एक ऐसा मंच बनाने को जिसमें कला-संस्कृति अपना विकास स्वभाविक रूप से कर सके। वे सदैव चिंतित थे कि बादल को कैसे समझे, धरा को कैसे महत्व दें। उनकी जीवंत सोंच आज भी हमारे साथ है। कला के प्रति, कला को बनाए रखने के प्रति उनकी सजगता हमारा पाथेय है। हमें उनके सपनों को पूरा करना है। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह चिंता का विषय है कि कई भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं। हमें झारखण्ड की भाषाओं को विलुप्ति से बचाना है। डाॅ0 रामदयाल मुण्डा जी ने साहित्य को भाषा को बचाने का माध्यम बताते हुए कहा था कि भाषा को अक्षुण्ण रखने के लिए साहित्य को बढ़ावा देना आवश्यक है। इस तरह भाषा के साथ-साथ लिपि का भी संरक्षण हो सकेगा। इस क्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि राँची स्थित जनजातीय शोध संस्थान को डाॅ0 रामदयाल मुण्डा जनजातीय शोध संस्थान के रूप में नामित किया जाएगा। साथ ही डाॅ0 रामदयाल मुण्डा के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए टैगोर हिल के सामने तथा बहरागोड़ा में सांस्कृतिक केन्द्र बनाया जाएगा, जहां झारखण्ड, बंगाल एवं उड़ीसा तीनों राज्यों के लोग समन्वित रूप से सांस्कृतिक विकास हेतु प्रयासरत होंगे। मुख्यमंत्री ने उनकी जयंती दिवस को जनजातीय समागम दिवस के रूप में मनाने की भी घोषणा की।
इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि यह डाॅ0 मुण्डा की 73वीं जयंती है। उनके दिवंगत होने के उपरान्त हम उनकी जयंती को समारोह के रूप में मना रहे हैं। डाॅ0 मुण्डा सदैव हमारे दिलों में बसेंगे। रूमबुल घ्वनि राज्य में ही नहीं अपितु देश में गूजेंगी। कलाकारों के वाद्य यंत्रों को एवं उससे निकलने वाली ध्वनि को संस्कृति की धरोहर को बचाने के लिए बचाना होगा। हमें उनके कार्यों को सरकार अथवा व्यक्तिगत स्तर से आगे बढ़ाना है।
उप मुख्यमंत्री श्री सुदेश कुमार महतो ने कहा कि डाॅ0 रामदयाल मुण्डा ने झारखण्ड की सांस्कृतिक को स्थापित किया। उन्होंने एक कला प्रेमी के साथ-साथ शिक्षाविद् के रूप में नेतृत्व दिया। उनके सपनों को पूरा करना हमारा दायित्व है। उनकी सोंच को सामने रखकर ही नौ क्षेत्रीय भाषाओं के अनुसंधान केद्र, पुस्कालय की स्थापना का निर्णय लिया गया। गाँव-गाँव तक क्षेत्रीय भाषा एवं लिपि की पहुँच हो। श्री सुदेश कुमार महतो ने कहा कि डाॅ0 मुण्डा के चेहरे पर बहुत सी चुनौतियाँ दिखती थीं, उन्हें पूरी संवेदना के साथ समझना है, और उसपर कार्य करना है।
पद्मश्री डाॅ0 रामदयाल मुण्डा जयंती समारोह का शुभारम्भ स्थानीय सैनिक मार्केट से सांस्कृतिक शोभा यात्रा के साथ आरम्भ हुई जिसमें कई जिलों से आए कलाकारों ने भाग लिया। मोरहाबादी मैदान के करीब डाॅ0 रामदयाल मुण्डा जी की प्रतिमा का अनावरण किया गया। इसके अतिरिक्त कुपुल पत्रिका एवं एक उपन्यास का विमोचन भी किया गया।
इस अवसर पर डाॅ0 रामदयाल मुण्डा की धर्म पत्नी, रूबुल की अध्यक्षा डाॅ0 अमिता मुण्डा, राँची विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ0 एल0एन0भगत, पूर्व कुलपति डाॅ0 के0के0 नाग, डाॅ0 करमा उराँव, डाॅ0 देवशरण भगत, ट्राइबल वेलफेयर सोसाइटी टाटा स्टील की श्रीमती उर्मिला एक्का समेत अनेकों कला प्रेमी, विशेषज्ञ एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।